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Jabalpur Top:“आज़ाद सेतु”—जबलपुर की पहचान बनने को तैयार?

“आज़ाद सेतु”—जबलपुर की पहचान बनने को तैयार?

चंद्रशेखर आज़ाद के नाम पर फ्लाईओवर की मांग ने पकड़ा ज़ोर,समाजवादी पार्टी और अंतरराष्ट्रीय बजरंग दल ने सांसद को सौंपा ज्ञापन

जबलपुर,मध्यप्रदेश।।

सांस्कृतिक चेतना और राजनीतिक सक्रियता का संगम बने जबलपुर शहर में इन दिनों एक मांग तेज़ी से उभर रही है,जो इतिहास से जुड़ने और वर्तमान को प्रेरित करने की एक सामूहिक कोशिश का प्रतीक बन गई है। बात हो रही है—नव-निर्मित फ्लाईओवर को “चंद्रशेखर आज़ाद” के नाम पर "आज़ाद सेतु" नाम देने की मांग की।

यह मांग कोई सामान्य नामकरण नहीं है,यह एक ऐतिहासिक विस्मृति को ठीक करने,एक बलिदानी क्रांतिकारी को वास्तविक सम्मान देने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणास्त्रोत तैयार करने की मुहिम बन चुकी है।

ज्ञापन सौंपा गया—“क्रांतिकारियों को केवल पाठ्यपुस्तकों में सीमित नहीं किया जा सकता”

समाजवादी पार्टी और अंतरराष्ट्रीय बजरंग दल के नेताओं का एक संयुक्त प्रतिनिधिमंडल सांसद आशीष दुबे से मिला और एक विस्तृत ज्ञापन सौंपा।ज्ञापन में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है:

"चंद्रशेखर आज़ाद जैसे वीर सपूत को यदि मध्यप्रदेश में अब तक कोई बड़ा सार्वजनिक स्थल नहीं मिला, तो यह हमारी ऐतिहासिक चेतना पर प्रश्नचिह्न है।'आज़ाद सेतु' न केवल उनका सम्मान होगा,बल्कि देशभक्ति की एक जीवित मिसाल भी बनेगा।"

प्रतिनिधियों ने इस पहल को राजनीतिक नहीं,बल्कि राष्ट्रीय जिम्मेदारी बताते हुए इसे प्राथमिकता से लागू करने की अपील की।

क्यों जरूरी है 'आज़ाद सेतु'?—एक नाम,जो नयी पीढ़ी को झकझोरेगा

चंद्रशेखर आज़ाद केवल एक स्वतंत्रता सेनानी नहीं थे, बल्कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की आत्मा थे।

उन्होंने अंग्रेज़ों के विरुद्ध युद्ध किया,ब्रिटिश पुलिस की पकड़ से हमेशा “आज़ाद” रहने का संकल्प लिया, और अंत में प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क में स्वयं को गोली मार कर अपने नाम को अमर कर दिया।

जबलपुर जैसे शहर,जिसकी मिट्टी में वीरता, शिक्षा और संघर्ष की परंपरा रही है—वहाँ आज़ाद जी के नाम पर एक भव्य संरचना होना केवल ज़रूरत नहीं, कर्तव्य है।

नेताओं की ज़ुबानी—“यह सिर्फ एक फ्लाईओवर नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन होगा”

समाजवादी पार्टी के आशीष मिश्रा ने कहा:

“जब युवा इस पुल से गुज़रें,तो उन्हें लगे कि वे किसी आम संरचना पर नहीं,बल्कि एक प्रेरणा के प्रतीक पर चल रहे हैं।”

अंतरराष्ट्रीय बजरंग दल के क्षेत्रीय संयोजक ने जोड़ा:

“मध्यप्रदेश जैसे बड़े राज्य में आज़ाद जी के नाम पर कोई भी राष्ट्रीय स्तर की स्मारक नहीं है—यह खामोशी अब तोड़नी होगी।”

सांसद आशीष दुबे का रुख—“संवेदनशीलता से देखूंगा यह मामला”

जब इस प्रस्ताव के बारे में सांसद आशीष दुबे से बात की गई तो उन्होंने कहा:

“आज़ाद जी हम सबके नायक हैं।अगर जनता की यह भावना है तो मैं ज़रूर संबंधित विभागों से विमर्श करूंगा। यह केवल नाम नहीं, पहचान का सवाल है।”

इतिहास,भूगोल और वर्तमान — सबका संगम बन सकता है “आज़ाद सेतु”

अगर यह मांग स्वीकृत होती है,तो यह पुल न केवल एक यातायातिक सुविधा रहेगा,बल्कि वह स्थल बन जाएगा जहाँ संस्कारधानी के संस्कार और बलिदान का प्रतीक एक साथ जीवित होंगे।

आज़ाद सेतु तब सिर्फ कंक्रीट और स्टील की संरचना नहीं होगी — वह एक विचार, एक बलिदान और एक संकल्प का प्रतीक बनकर उभरेगा।

क्या जबलपुर इतिहास का सम्मान करेगा?

अब यह देखना शेष है कि क्या प्रशासन और सरकार इस भावनात्मक और ऐतिहासिक मांग को अमलीजामा पहनाएंगे या यह केवल ज्ञापन की फाइलों में गुम हो जाएगी।

“आजाद सेतु” — क्या यह सपना हकीकत बनेगा?

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