“न्याय के मंदिर बने,लेकिन दरवाज़े अब भी संकरे हैं” –CJI गवई का बड़ा बयान
नई दिल्ली।भारत की न्याय व्यवस्था पर एक सख्त और ईमानदार टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बी.आर.गवई ने कहा है कि “हमने न्याय के मंदिर तो बना दिए,लेकिन उनके दरवाज़े बहुत संकरे हैं।”उन्होंने अदालतों में बढ़ते लंबित मामलों के लिए बार (वकील)और बेंच (जज)दोनों को जिम्मेदार ठहराया है।
बार और बेंच दोनों जिम्मेदार
सीजेआई गवई ने साफ शब्दों में कहा –“कुछ हाईकोर्ट जज बेहद मजबूत और निडर हैं, लेकिन कुछ का प्रदर्शन वाकई निराशाजनक है।”
उनका कहना था कि लंबित मामलों की समस्या पर सिर्फ सरकार या अदालत को दोष देना ठीक नहीं, बल्कि वकीलों और जजों को मिलकर आत्ममंथन करना होगा।
सिर्फ अमीरों की पहुंच में है न्याय
लेक्चर सीरीज़ के दौरान उन्होंने बेहद गंभीर सवाल उठाया –
•आज भी न्याय तक पहुंच सिर्फ अमीरों का विशेषाधिकार है।
•वकीलों की फीस आम आदमी की महीने की आय से कहीं ज्यादा होती है।
•अदालतों की जटिल प्रक्रियाएं लाखों लोगों के लिए समझ से बाहर हैं।
•कोर्ट के गलियारे आम जनता को डराते हैं।
इस वजह से आम आदमी अब भी न्याय पाने से वंचित है।
“देर से मिला न्याय,न्याय नहीं”
सीजेआई गवई ने कहा कि अगर किसी को सालों बाद फैसला मिलता है तो वह बेकार न्याय है।
•बार-बार स्थगन (adjournment) लेने की प्रवृत्ति
•जजों की तैयारी की कमी
•और प्रक्रियात्मक देरी
— ये सब मिलकर लंबित मामलों की आग को और बढ़ा रहे हैं।
क्यों खास है यह बयान?
यह बयान उस दौर में आया है जब देशभर की अदालतों में करोड़ों मामले लंबित पड़े हैं।एक ओर आम जनता को समय पर सुनवाई नहीं मिल रही,वहीं दूसरी ओर न्यायपालिका पर पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग लगातार बढ़ रही है।
निष्कर्ष
CJI गवई का यह संदेश सिर्फ जजों या वकीलों के लिए नहीं,बल्कि पूरे समाज के लिए है—“जब तक न्याय समय पर और सबके लिए सुलभ नहीं होगा, तब तक लोकतंत्र अधूरा है।”
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