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Jabalpur Top News:CMHO जांच में खुद ही बने दोष के गवाह:जबलपुर में डॉ.संजय मिश्रा पर बिखरती भरोसे की नींव...

CMHO जांच में खुद ही बने दोष के गवाह: जबलपुर में डॉ.संजय मिश्रा पर बिखरती भरोसे की नींव...

 जबलपुर,मध्यप्रदेश।विशेष रिपोर्ट

जबलपुर स्वास्थ्य विभाग के शीर्ष पद पर वर्षों से बैठे CMHO डॉ.संजय मिश्रा अब जांच रिपोर्टों की ज़द में खुद को ही उलझा चुके हैं।चौंकाने वाली बात यह है कि उन्होंने जिस रिपोर्ट में खुद को निर्दोष बताने की कोशिश की—उसी में उनके बयान और जवाब उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बनकर सामने आए हैं।

दलीलें जो खुद को ही काट गईं”

शासन को सौंपी गई आधिकारिक रिपोर्ट बताती है कि मिश्रा के जवाब न केवल विरोधाभासी थे,बल्कि कई स्थानों पर बिना दस्तावेजी साक्ष्य के खाली दावे थे। रिपोर्ट में खासतौर पर उन्हें "स्व-विरोधाभासी,तथ्यों से परे और भ्रम उत्पन्न करने वाला"बताया गया है।

जांच में सामने आए 5 बड़े झटके:

1.निजी लैब कनेक्शन:

CMHO रहते हुए डॉ. मिश्रा के नाम से निजी पैथोलॉजी लैब्स जुड़ी थीं। उन्होंने कहा कि"नाम हटवा दिया",लेकिन कोई ठोस प्रमाण पेश नहीं कर सके।

2.दोहरे विवाह का उलझा सच:

2017 में इशिप्ता सिंह से विवाह का जिक्र है,लेकिन पहली पत्नी तृप्ति मिश्रा के नाम से दस्तावेज़ों में हेराफेरी क्यों?क्या यह जानबूझकर सेवा रिकॉर्ड से जानकारी छुपाना नहीं?

3.सेवा पुस्तिका में फर्जीवाड़ा:

रिपोर्ट में खुलासा कि सेवा पुस्तिका में गुपचुप पृष्ठ जोड़े गए,ये एक “गलती” नहीं, बल्कि व्यवस्था को गुमराह करने की सोची-समझी रणनीति मानी गई है।

4.बेनामी संपत्ति और अवैध क्रय:

मिश्रा ने शासन की अनुमति के बिना संपत्तियां खरीदीं, जो कि सेवा नियमों का स्पष्ट उल्लंघन है,क्या यह पद की ताकत से निजी संपत्ति खड़ी करने की कोशिश नहीं?

5.सरकारी पोर्टल से छेड़छाड़:

IFMIS जैसे सुरक्षित पोर्टल में उन्होंने खुद अपने पारिवारिक विवरणों में बदलाव कर दिए,यह एक ‘टेक्निकल गलती’नहीं,बल्कि सिस्टम के साथ ‘खेल’ था।

गायब सात साल का रहस्य–कौन से दरवाज़े बंद थे?

डॉ.मिश्रा का चयन 1990 में हुआ,लेकिन विभागीय जॉइनिंग 1997 में,इस बीच की अवधि में उन्होंने MD की पढ़ाई का हवाला दिया।लेकिन शासन की कोई आधिकारिक अनुमति आज तक सामने नहीं आई, सात साल तक कहां थे डॉक्टर साहब?

ब्लैकमेलिंग या प्रीप्लान्ड गेमप्लान?

हाल ही में मिश्रा ने मीडिया पर ब्लैकमेलिंग का आरोप लगाया,साथ खड़े थे Apple लैब के अमित खरे — जिनका मिश्रा से व्यावसायिक संबंध सामने आया। सवाल ये उठता है:

•क्या यह ब्लैकमेलिंग थी,या मीडिया की जांच से बचने की साजिश?

उपमहाधिवक्ता की संदिग्ध भूमिका

हाईकोर्ट में शासन की ओर से खड़े उपमहाधिवक्ता ने शासन से ज़्यादा मिश्रा का पक्ष रखा—जिससे न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़े हो गए हैं।

अब शासन के सामने दो ही विकल्प:

✅ या तो उदाहरण पेश कर मिश्रा पर त्वरित कार्रवाई करे

❌ या फिर इसे भी ‘जांच जारी है’कह कर सिस्टम में दफन कर दे

विश्लेषण:यह मामला व्यक्ति नहीं,सिस्टम की गिरावट का आईना है

डॉ.संजय मिश्रा सिर्फ एक नाम नहीं,बल्कि उस व्यवस्था की पहचान बन चुके हैं जो वर्षों तक चुपचाप तमाशा देखती रही।अगर अब भी शासन कोई निर्णायक कदम नहीं उठाता — तो संदेश साफ होगा:

सिस्टम से बड़ा कोई नहीं,लेकिन सिस्टम ही सबसे ज्यादा असहाय है।


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