‘अब जनता की मर्जी से तय होगी कुर्सी’:मोहन सरकार पलटने जा रही निकाय चुनावों की दशकों पुरानी व्यवस्था...
क्या बदला?
अभी तक अध्यक्ष को चुनने का अधिकार पार्षदों के पास था,लेकिन इस व्यवस्था पर लगातार धनबल और दबाव की राजनीति हावी होने की शिकायतें मिलती रहीं,इसी को देखते हुए सरकार ने प्रत्यक्ष प्रणाली फिर से लागू करने का फैसला किया है।
विधानसभा में आएगा विधेयक
नई व्यवस्था को लागू करने के लिए विधानसभा सत्र में विधेयक लाया जाएगा,जब तक कानून पास नहीं होता, तब तक मौजूदा अध्यक्षों को अविश्वास प्रस्ताव से हटाया नहीं जा सकेगा।
अविश्वास प्रस्ताव की अवधि भी बढ़ेगी
सरकार अगली कैबिनेट बैठक में अध्यादेश लाने जा रही है,जिसके तहत अविश्वास प्रस्ताव की अवधि 3 साल से बढ़ाकर साढ़े 4 साल की जाएगी।
क्यों जरूरी पड़ा बदलाव?
•कई नगर पालिकाओं और परिषदों में लगातार कलह और अविश्वास प्रस्ताव सामने आ रहे थे।
•देवरी और शिवपुरी जैसी जगहों पर अध्यक्ष के खिलाफ बगावत हुई।
•पार्षदों की राजनीति से अराजक स्थिति बनने लगी
शिवराज से मोहन तक का सफर
•2014 तक–जनता चुनती थी अध्यक्ष।
•शिवराज सरकार–अप्रत्यक्ष प्रणाली लागू,पार्षद चुनते थे अध्यक्ष।
•कमलनाथ सरकार–बदलाव की कोशिश,पर सरकार गिर गई।
•अब मोहन सरकार–फिर से जनता को दिया जा रहा सीधा अधिकार।
नया संदेश साफ है–अब स्थानीय निकायों की ‘कुर्सी’ का फैसला बंद कमरों में नहीं,बल्कि जनता के वोट से होगा।
Post a Comment
0 Comments