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आपके कानूनी अधिकार:FIR दर्ज कराना हर नागरिक का हक,जानिए पूरी प्रक्रिया और अपने अधिकार...

आपके कानूनी अधिकार:FIR दर्ज कराना हर नागरिक का हक,जानिए पूरी प्रक्रिया और अपने अधिकार...

न्याय की पहली सीढ़ी FIR (फर्स्ट इन्फॉर्मेशन रिपोर्ट) होती है,इसी के बाद पुलिस आगे की प्रक्रिया पूरी करती है।लेकिन कई बार पीड़ित को इसी पहले कदम पर अड़चनों का सामना करना पड़ता है,जब पुलिस किसी कारणवश FIR दर्ज करने से इनकार कर देती है।


FIR और शिकायत में क्या अंतर है..?


FIR और शिकायत दोनों ही अलग-अलग होती हैं। चोरी,लड़ाई-झगड़ा या धमकी जैसे अपराध के मामलों में पहले शिकायत दर्ज की जाती है।इसके बाद पुलिस जांच-पड़ताल करती है,जांच सही पाए जाने के बाद पुलिस FIR दर्ज करती है।शिकायत को पुलिस अपने स्तर पर ही खत्म कर सकती है,लेकिन FIR दर्ज होने के बाद पुलिस को उस केस को कोर्ट में लेकर जाना ही पड़ेगा।


मान लीजिए कि...


किसी ने पुलिस से कहा कि‘मेरा मोबाइल चोरी हो गया है।’इसके बाद पुलिस ने जांच की,लेकिन उसे कोई सबूत नहीं मिला तो वह शिकायत बंद की जा सकती है।वहीं अगर पुलिस को चोरी के सबूत मिले हैं और FIR दर्ज हो गई,फिर चाहे बाद में दोनों पक्षकार समझौता भी कर लें,फिर भी केस को कोर्ट की अनुमति से ही खत्म किया जा सकता है।


पुलिस FIR दर्ज करने से मना करे तो क्या करें..?


एडवोकेट सरोज कुमार सिंह बताते हैं कि ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी गंभीर अपराध की शिकायत मिलने के बाद पुलिस को बिना किसी देरी के FIR दर्ज करनी होगी।अगर थाना प्रभारी FIR दर्ज करने से इनकार करता है तो नागरिक पुलिस अधीक्षक(SP),उपमहानिरीक्षक (DIG) या महानिरीक्षक(IG) से लिखित शिकायत कर सकता है।


कानूनी विकल्प


अगर उच्च अधिकारी भी कार्रवाई न करें तो पीड़ित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन देकर पुलिस को FIR दर्ज करने का आदेश दिलवा सकता है।मजिस्ट्रेट के पास प्राइवेट शिकायत(Private Complaint) दर्ज करवाई जा सकती है।अगर मजिस्ट्रेट भी कोई आदेश नहीं देता या पुलिस जांच में देरी करती है तो पीड़ित हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकता है और FIR दर्ज कराने का निर्देश मांग सकता है।


पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई


अगर कोई पुलिस अधिकारी FIR दर्ज करने से इनकार करता है,तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।विभागीय शिकायत और अनुशासनात्मक कार्रवाई नागरिक पुलिस अधीक्षक (SP)या अन्य उच्च अधिकारियों से पुलिसकर्मी की शिकायत कर सकता है।भारतीय न्याय संहिता(BNS) के तहत,अगर कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्य का पालन नहीं करता तो उसे 6 महीने से 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।


ऑनलाइन FIR


भारत में कई राज्यों में ऑनलाइन FIR दर्ज करने की सुविधा उपलब्ध है,यह सुविधा मुख्य रूप से ई-एफ आईआर(e-FIR)के रूप में दी जाती है,जो नॉन-कॉग्निजेबल(गैर-संज्ञेय)अपराधों के लिए होती है,जैसे चोरी,गुमशुदगी,साइबर अपराध आदि।हालांकि गंभीर अपराधों के लिए आपको पुलिस स्टेशन जाना जरूरी होता है।


जांच में लापरवाही


ऐसी स्थिति में संबंधित थाना प्रभारी(SHO)से बात करें और उन्हें समस्या बताएं।अगर समाधान न मिले तो पुलिस अधीक्षक(SP)या वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP)से संपर्क करें।राज्य के डीजीपी(Director General of Police)को लिखित शिकायत भेज सकते हैं।इसके अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)या राज्य मानवाधिकार आयोग में शिकायत कर सकते हैं।


FIR रद्द करना


FIR दर्ज होने के बाद उसे सीधे पुलिस नहीं हटा सकती है,इसके लिए कोर्ट से अनुमति लेनी होती है, खासकर अगर मामला गंभीर अपराध से जुड़ा हो।


FIR कॉपी


FIR दर्ज होने के बाद पीड़ित को उसकी एक कॉपी मुफ्त में मिलनी चाहिए,यह नागरिक का अधिकार है और इसमें कोई शुल्क नहीं लगता है।


दूसरे राज्य में अपराध


FIR उसी जगह के पुलिस थाने में दर्ज करनी होती है जहां अपराध हुआ है,लेकिन कई मामलों में जीरो FIR (Zero FIR)की सुविधा होती है,जो किसी भी थाने में दर्ज की जा सकती है और बाद में संबंधित थाने में ट्रांसफर हो जाती है।

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