"डिग्री का द्वंद्व:सरकारी यूनिवर्सिटी ने बंद किए दरवाज़े,निजी संस्थान बन गए मजबूरी का बाज़ार"
भोपाल।शोध की दिशा में क़दम बढ़ाने निकले मध्यप्रदेश के हजारों युवा आज एक अजीब सी उलझन में फंसे हैं —सरकारी यूनिवर्सिटी में गेट बंद हैं और निजी संस्थान नोटों से खुले हैं।पीएचडी जैसी गंभीर अकादमिक डिग्री के लिए अब रास्ते दो हैं:या तो NET जैसी कठिन राष्ट्रीय परीक्षा पास करें, या फिर लाखों रुपये लेकर प्राइवेट यूनिवर्सिटी की ओर मुड़ें।
बीयू की नीति,छात्रों की परेशानी
राजधानी की बरकतउल्ला यूनिवर्सिटी(BU)ने अपने 40 विषयों में पीएचडी प्रवेश के लिए सिर्फ NET स्कोर को अनिवार्य कर दिया है।यूनिवर्सिटी की 2379 सीटों में से 60% से ज्यादा खाली हैं—क्योंकि आवेदन करने वालों की संख्या बेहद कम है।कारण साफ है: NET स्कोर ही एकमात्र पात्रता है,और यह स्कोर भी सिर्फ एक साल के लिए वैध होता है।
निजी विश्वविद्यालय:विकल्प नहीं,‘किफायती मजबूरी’
वहीं दूसरी ओर,निजी यूनिवर्सिटियाँ छात्रों के लिए दो रास्ते खोलकर बैठी हैं—NET हो तो अच्छा,नहीं है तो अपनी एंट्रेंस परीक्षा के जरिए दाखिला दे देती हैं।
पर ये रास्ता सस्ता नहीं है—जहां सरकारी यूनिवर्सिटी में पीएचडी की कुल लागत ₹90,000 से ₹1 लाख तक होती है,वहीं निजी संस्थानों में यही डिग्री ₹3 से ₹4 लाख में बिक रही है।
नीतियों का विरोधाभास या शैक्षणिक भटकाव?
पूर्व रजिस्ट्रार एचएस त्रिपाठी का कहना है,“UGC ने यूनिवर्सिटी को अपना एंट्रेंस एग्जाम लेने का अधिकार दिया है,BU चाहे तो दोनों विकल्प दे सकती थी,पर छात्र हितों को नज़रअंदाज़ किया गया।”
वहीं प्राइवेट यूनिवर्सिटी एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. भरत शरण सिंह भी मानते हैं कि “नीतियाँ स्पष्ट होनी चाहिए—ताकि छात्र भ्रम में न रहें।”
❓सवाल यह है
जब सरकारी दरवाज़े नेट स्कोर से बंद कर दिए जाते हैं और निजी संस्थान पैसे से खोल देते हैं—तो शिक्षा प्रणाली का मूल्यांकन किस आधार पर होगा:प्रतिभा से या भुगतान से?
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