सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला:चयनात्मक नियमितीकरण असंवैधानिक,सभी दैनिक वेतनभोगियों को मिलेगा समान लाभ
दिल्ली।सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक आदेश देते हुए कहा है कि एक ही प्रतिष्ठान में समान कार्य करने वाले दैनिक वेतनभोगियों को चयनात्मक रूप से नियमित करना समता का उल्लंघन है।कोर्ट ने राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे कर्मचारियों के लिए अतिरिक्त पद सृजित करें और सभी को समान लाभ दें।क्या है मामला?
उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग में कार्यरत पांच चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और एक चालक 1989-1992 से लगातार काम कर रहे थे।लंबे समय तक सेवा देने के बावजूद राज्य ने वित्तीय बाधाओं और नए पदों के सृजन पर रोक का हवाला देकर उनका नियमितीकरण ठुकरा दिया।वहीं,उन्हीं पदों पर कार्यरत अन्य कर्मचारियों को नियमित कर दिया गया,इसी भेदभाव के खिलाफ कर्मचारियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने कहा:
👉“चुनिंदा नियमितीकरण,जबकि नियमित किए गए लोगों के समान कार्यकाल और कर्तव्यों के बावजूद अपीलकर्ताओं को दैनिक वेतन पर जारी रखना,समता का स्पष्ट उल्लंघन है।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य एक संवैधानिक नियोक्ता है और उसे उच्चतर मानकों पर खरा उतरना चाहिए।कर्मचारियों की सेवा को स्थायी रूप से व्यवस्थित करना और नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता बनाए रखना राज्य की जिम्मेदारी है।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
⚖️सभी अपीलकर्ताओं को 2002 से नियमित माना जाएगा।
⚖️पूर्ण बकाया वेतन,सेवा निरंतरता और सभी परिणामी लाभ दिए जाएंगे।
⚖️जहाँ पद उपलब्ध नहीं हैं,वहां अतिरिक्त पद सृजित किए जाएंगे।
⚖️नियमितीकरण के बाद कर्मचारियों को न्यूनतम वेतनमान से कम पर नहीं रखा जाएगा।
⚖️वरिष्ठता और पदोन्नति की गणना नियमितीकरण की तिथि से होगी।
क्यों है यह फैसला अहम?
यह निर्णय न सिर्फ उत्तर प्रदेश बल्कि पूरे देश के उन लाखों दैनिक वेतनभोगी,संविदा और अस्थायी कर्मचारियों के लिए मिसाल है जो वर्षों से समान कार्य करने के बावजूद नियमितीकरण से वंचित हैं।
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